हक से
क्या हुआ ग़र इश्क़ मुकम्मल ना हुआ अपना
क्या हुआ ग़र इश्क़ मुकम्मल ना हुआ अपना
यही क्या कम है जो आज भी मेरे सीने में वो
और उसके सीने में हम आज भी जिंदा हैं
हो सकता है उन तस्वीरों पे धूल सी जम जम जाएगी कभी
पर दिल कैसे भूल सकता है उस चेहरे को, उस सुर्ख हसीं को
उसकी मासूमियत को,
मासूमियत से याद है आया, आज भी तो वो उतनी ही मासूम और जिंदादिल है
जितना पहले हुआ करती थी,
हाँ एक बात और, प्यार किया तो हक से किया
इजहार किया वो भी हक से किया
अब उसका इंतजार भी करेंगे तो हक से करेंगे
निकलेगी जब भी दुआ दिल से उसकी खैरियत को
हर वो आवाज हक से निकलेगी 😍😍😘😘
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